तेरी आँखों ने क्या जादू किया
मेरे ख़्वाबों में तुम आने लगे
मुझे तुमसे नहीं था शिकवा कोई
मुझे क्यूँ कर तुम आज़माने लगे ।।
कभी पास मेरे होते हो जो तुम
मुझे होश नहीं फिर रहता है कुछ
क्यूँ ख़्वाब तेरे अक्सर अब तो
मुझे रातों को तड़पाने लगे ।।
तुमसे जो मिलेंगी नज़रें कभी
लम्हा भी वो होगा कितना हसीं
क्यूँ ख़्वाब ये आ आकर अक़्सर
मुझको इतना बहकाने लगे ।।
मेरी ज़िन्दगी थी बस तनहा
पर तुम जो मिली तो ऐसा हुआ
लहरा के तुम अपना आँचल फिर
प्यार इतना क्यूँ बरसाने लगे ।।
ये ही ज़िंदगी की है दास्तां
अभी साथ हैं कल हम हों कहाँ
तुम इतनी सी बात पे हो के ख़फ़ा
ये नैना क्यूँ छलकाने लगे ।।
— अमिताभ ‘आलेख’
अमिताभ तुम्हारी ये ग़ज़ल शायद मैं ग्रूप पर पढ़ चुका हूँ.बहुत ही खूबसूरत है मेरी राय है कि पेहले रचनाएँ वेब पेज पर डाला करो.यहाँ अधिक लोगो को सुलभ रहती है
धन्यवाद शिशिर जी। वैसे हर रचना पहले website पे ही डालता हूँ। ये कुछ कारण से delete हो गयी थी तो पुनः डाली है।
खूबसूरत रचना !!
शुक्रिया धर्मेन्द्र जी.