तू पथ पर अपने चलता चल |
मंजिल को पास बुलाता चल |
सभी समस्याओं का मिलकर ,
बात -चीत से निकले हल |
कैसी भी हो आग भयानक ,
कर सकते हो तुम शीतल |
मंदिर हो या गुरुद्वारा हो ,
शीश झुका दें गंगा जल |
चंदा -तारों से हम सीखें ,
कैसे रहते हैं यह हिलमिल |
निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे ,
कल-कल कर बहती अविरल |
भेद न करती भारत माँ है ,
सब पर फैलाये अपना आँचल |
पंकज द्वैष-भावना त्यागो ,
जीवन बन जायेगा परिमल |
आदेश कुमार पंकज
बहुत अच्छा लिखा है