Homeआरज़ू लखनवीजो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं शुभाष आरज़ू लखनवी 24/02/2012 No Comments जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं। वो कमयाब है जो कमयाब हो न सका॥ बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से। चमन में आके भी काँटा गुलाब हो न सका॥ … …. … उदू न भी मगर अन्धी ज़रूर थी बिजली। कि देखे फूल न पत्ते न आशियाँ देखा॥ Tweet Pin It Related Posts अब मुझको फ़ायदा हो दवा-ओ-दुआ से क्या फिर ‘आरज़ू’ को दर से उठा, पहले यह बता नैरंगियाँ चमन की तिलिस्मे-फ़रेब हैं About The Author शुभाष Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.