छोटी गिलहरी की छोटी सी दुनिया ,
बिट्टू है किट्टू है वो प्यारी मुनिया ||
हँसती है जब वो बजती है बंशी ,
रोते ही उसके छा जाय उदासी ||
वो उछले , वो कूदे
वो पालने में झूले ,
मैं जब पुकारु तो मुझको निहारें ,
ना जाने मन में वो क्या – क्या बिचारे ||
बिटिया हमारी , है कितनी प्यारी ,
बंजर को उसने बनायी फुलवारी ||
छोटे से हाथो में छोटी लकीरें ,
इन में छुपी है कल की तस्वीरें ||
स्नेह से भरी अति सुन्दर रचना
हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद मधुकर जी ………….
बचपन के मनमोहक करतबों का सरल शब्दों में सुनदर चित्रण !!
बहुत सुन्दर सुशील जी । वात्सल्य ही वात्सल्य ।