वर्षा भी कुछ कहती है
इसके हर एक बूंद
बूंद के हर शब्द मे
अनेकों राज छुपाये रहती है
वर्षा भी कुछ कहती है
पनी से निकलते
हल्के-हल्के मधुर संगीत
जीवन की सच्चाई गुनगुनाती है
वर्षा भी कुछ कहती है
पनी भरे बादल के
सब्र का बांध जब टूट जाता है
तब छत पर पड़े
धूल-मिट्टी गंदगी आदि
सभी को
एक ही पल में, छन में
धरती पर ले आती है
वर्षा भी कुछ कहती है
धूल, मिट्टी, कणों आदि को
जब अहंकार आ जाता है
अतीत भूल वह हर-पल
सभी छतो पर छा जाता है
तब आने वाली कुछ ही पल में
वर्षा आ जाती है
सभी कणों के अहंकार को
एक छन मे ,पल मे
मिट्टी मे बहा लाती है
उस अहंकार को तोड़ वह
फिर से चली जाती है
वर्षा भी कुछ कहती है।
—संदीप कुमार सिंह।
वर्षा की बूंदो को मूर्त रूप देती सुंदर रचना !!
प्रतिभा कूट कूट के भरी है आपमें ।