विचारों की अनंत प्रवाह धारा में ह्रदय से स्वतः निकल आने वाला जो कुछ भी है सब काव्य है इसीलिए मेरी असुक्ष्मद्रष्टि और सीमित हृदय से सम्बंधित होने पर भी , ये जो भी आपके सम्मुख है - काव्य है ।
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वाह किस अंदाज में इंसानी मोह को परिभाषित किया है.
बहुत खूब ………..!!