तू ही मेरी दुनिया तू ही मेरा अरमाँ।
तुझे ये फ़साना मैं कैसे सुनाऊँ।।
लिखी है ग़ज़ल ख़ूबसूरत सी मैंने
ग़ज़ल में लिखा है मोहब्बत है तुझसे,
हाल-ए-दिल कह रही है ग़ज़ल ये मेरी पर
ग़ज़ल ये तुझे मैं कैसे सुनाऊँ।।
तू ही मेरी दुनिया…
चाँद में चांदनी है फूलों में ख़ुशबू
फ़िज़ाओं में हल्का सा एक जो नशा है,
इन्हें जो मिला है वो तुझसे मिला है
मगर ये तुझे मैं कैसे बताऊँ।।
तू ही मेरी दुनिया…
ये दौलत ये शौहरत ये इज़्ज़त ये रुतबा
पाया है हमने जो कुछ ज़िन्दगी में,
वो चेहरे से चिल्मन हटा के तो देखें
ख़ुदा की क़सम मैं ये सब हार जाऊं।।
तू ही मेरी दुनिया…
— अमिताभ ‘आलेख’
वाह क्या अंदाज़ है कहने का. अमिताभ तुम्हारी ग़ज़ल पढ़कर आनंद आ जाता है.
बहुत बहुत शुक्रिया शिशिर जी आपकी इस तारीफ़ के लिए।
बेहतरीन रचना !!
धन्यवाद धर्मेन्द्र जी।