मैं तुम्हारी पत्नी हूँ और तुम्हारे साथ हूँ
तुम्हे इसका एहसास जब होता नहीं तो मैं क्या करूँ .
हाँ मैंने तुम्हे शादी के बाद सबसे प्रिय व्यक्ति नहीं समझा तो क्या
तुम्हारे कपडे तो सदा मैंने ही धोए, रोटी भी बनाई, बीमारी में अस्पताल
ले गई, दवाई दी, ब्लड प्रेशर नापा और सदा ये चाहा की तुम्हारी नौकरी
बनीं रहे.
एक पत्नी ही तो आखिर ये सब करती है
तुम्हे इसका एहसास जब होता नहीं तो मैं क्या करूँ
हाँ जब तुम कपड़े पहन कर जँचते हो
तो मुझे कुछ देर के लिए अच्छा लगता है
लेकिन तुम्हे खाने में क्या पसंद है मुझे समझ नहीं आता
तुम्हारे पास अच्छे कपड़े हैं या नहीं मुझे इसकी चिंता नहीं होती
सत्रह साल बाद भी मैं नहीं जानती कि तुम्हारे लिए क्या नाश्ता
खाना बनाऊ
एक पत्नी होने के लिए ये जानना तो कोई ज़रूरी नहीं.
तुम्हे इसका एहसास जब होता नहीं तो मैं क्या करूँ
तुम्हारी पसंद नापसंद का मैं कोई ख्याल नहीं रखती तो क्या
ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि ब्याहनें के कारण तुम मुझे सब सुख दो
तुम्हारी तबीयत कि मजबूरी स्रे मुझे क्या
मेरी इच्छाओं को पूरा ना करके तुमने मेरे अरमानों को तोड़ा है
मैं फिर भी तुम्हारे साथ रहती हूँ
एक पत्नी ही तो आखिर ये सब करती है
तुम्हे इसका एहसास जब होता नहीं तो मैं क्या करूँ
तुम्हारे सब सम्बन्धियों का मैं पूरा लाभ उठाऊ ये तो मेरा अधिकार है
लेकिन तुम अपने दम पर वो ना पा पाए जो मेरे और सम्बन्धिओं ने पा लिया
तुम्हारी इस कमी के बाद भी मैं तुम्हारे साथ हूँ
एक पत्नी ही तो आखिर ये सब करती है
तुम्हे इसका एहसास जब होता नहीं तो मैं क्या करूँ
शिशिर “मधुकर”
एक द्वन्द जो अकसर प्रत्येक नारी की मनोव्यथा एवं उसके समर्पण का लेख जोखा, खूबसूरती से लफ्जो की माला में गूथ दिया !! लाजबाब रचना !!
बहुत रोष है शायद उनके प्रति । खासकर अपने सम्बन्धियों और आपने सम्बन्धियों में अंतर को लेके । एक पिछली कविता में भी महसूस किया ।
औचित्य आज तो इस तरह की समस्यायें अक्सर सुनने को मिल जाती है वैसे दर्द तो सच से ही निकलता है लेकिन मेरे आकलन का एक रूप मेरी उनको हमारी शादी की सालगिरह पर दी गई मेरी एक अँग्रेजी कविता से पता चलेगा. इस कविता को familyfriendpoems.com पर मेर नाम सर्च करने पर मिलेगी
I keep on reading your poems regularly.it seems you do not like and love your wife at all…it reflects in your work.
Any way this is your personal problem
आपने मेरी रचना का बिलकुल गलत अर्थ निकाला है. यदि मुझे प्यार ना होता तो शिकायते क्यों होतीं. जिसे आप सबसे ज्यादा चाहते हो उससे ही सबसे ज्यादा शिकायते होतीं हैं. किसी भी रिश्ते के बारे में हम सभी की एक कल्पना होती है जो अक्सर पूरी तरह कभी किसी की पूरी नहीं होती. कुछ अपवाद अवश्य हो सकते हैं. अपनी अतृप्त कल्पनाओं/इच्छाओं को कुछ लोग छुपा लेते हैं, कुछ लोग साहित्य (कविता/गद्य) के माध्यम से उद्घाटित करते है, कुछ नशा करके भुलाते है, कुछ आध्यात्म की और उन्मुख हो कर सँभालते है और कुछ लोग इस सब के बारे में बिलकुल नहीं सोचते.
बाप बेटे को पीटता है गाली देता है इसका यह अर्थ तो कदापि नहीं होता की वो उसे प्यार नहीं करता.
आप मेरे द्वारा मेरी पत्नी के लिए लिखी रचनाए “तेरा जनम दिन “, “मेरी जीवन संगिनी” व् “घर के पागल” भी अवश्य पढ़े. तब आप समझ पाएंगे कि समय समय पर भावनाए बदलती रहती है व् उनका कोई स्थाई अर्थ निकालना विवेकपूर्ण नहीं है.