एक ख़्वाब जो देखा था मैंने, वो कब का चकनाचूर हुआ
जो चाहा मैंने जीवन में, जीने को उस बिन मजबूर हुआ
ऐसे तो काम ना थे मेरे, जो किस्मत मुझसे रूठ गई
हर निर्णय मेरा गलत हुआ, सारी उम्मीदें टूट गई
अब चारों तरफ अँधेरा है, और कोई ना रस्ता दिखता है
जो घाव दिया है अपनों ने, वो दर्द के साथ में रिसता है
मैंने तो मोहब्बत माँगी थी, फिर क्यों मुझको ये चोट मिली
मेरे जीवन में नहीं है कोई, सच्ची श्रद्धा बिन खोट मिली
क्या यूँ ही गुज़र जाएगी उमर, सूनेपन में खालीपन में
या कोई मुझे भी ढूंढेगा, दीवानो सा अपनेपन में
ऐसा लगता है कहीं कोई, साथी करता है इन्तजार
मन में कहता धीमे से, आने वाली है अब बहार
जब तक ना होगा अपना मिलन, ये तड़प युहीं तड़पाएगी
आ जाएगी जब वो जीवन में, हर कली फूल बन जाएगी.
शिशिर “मधुकर”
प्रतिक्रिया करने के लिए शब्द नही है , अति सुंदर |
सुशील इससे बढ़िया सराहना और क्या हो सकती है? धन्यवाद.
बहुत अच्छे ढंग और शब्दों के प्रयोग से कही आपकी यह रचना बहुत उम्दा बन पड़ी है.
तारीफ के लिए अनेको शुक्रिया अमिताभ
नकारत्मकता को त्याग कर सकारत्मक विचारो को अपनाना इससे बढ़कर जीवन में कोई अच्छा काम नही हो सकता !! जीने की सुन्दर कला का उत्तम चित्रण !!
बहुत बहुत शुक्रिया निवातिया जी.