मेरे राग उठो निस्तेज पड़े ,
मेरे गान उठो निर्वेग खड़े ,
क्या लाभ तुम्हारा निहित कहो
आवेग बनो बन ज्वाल बहो |
हैं ध्यानमग्न सब स्वसंधान में
बहते हैं सब निज धार आन में ,
उद्वेलित कर दो इसी तान में
झूमे सब हो एक तान में |
रे मेरे गुथे भाव स्वरोँ-
उत्साह वेग रोर भरो
द्वन्द भर उत्थान करो,
मस्तिष्क में हित ज्ञान भरो |
– औचित्य कुमार सिंह
बहुत जोश जगाने वाली रचना है. आपका भाषा पर अधिकार सराहनीय है.
धन्यवाद शिशिर जी। आपकी प्रतिक्रियाए सदैव उत्साहवर्धन करती हैं ।
शब्दावली से सुसज्जित उत्साहवर्धन करती शोभायमान, रचना !!
धन्यवाद निवतियां जी ।