हर-एक शायर का कोई न कोई निशाँ रहता है।
हर-एक चेहरा किसी चेहरे पर फ़ना रहता है।
कुदरत लिखने के लिए वादियों की जरुरत नहीं।
जहाँ ख्याल ले जाना चाहे वो वहाँ रहता है।
एहतराम करता है लफ्जों का खुद से जायदा।
शायर का बस इतना सा तो गुनाह रहता है।
जिसने जीते जी करी हो शायरी से मोहब्बत।
वो शख्श मरने के बाद भी परेशाँ रहता है।
राकेश।
अच्ची रचना ऐसे ही लिखते रहिये
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जी शुक्रिया।
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Pehli or antim lines bahut sunder ban padi hai
बहुत ख़ूब……….. हम गाते थे जब वो संग-दिल थे ,,, आज लिखते हैं जब वो संगदिल हैं |
बहुत अच्छा लिखा है
सुन्दर रचना, कृपया वर्तनी और लय पर ध्यान दे !!
बहुत खूब राकेश जी.