ओ ईश्वर की देन सकल मानव जीवन को
जीवन में तेरे बिन केवल है अँधियारा
फूल खिलें जो प्यार के तेरे इस उपवन में
महक जाएगा दूर दूर तक चमन हमारा .
जीवन के हर क्षण में हमको चाह है तेरी
दुःखी हुए हम जब जब तूने आँखे फेरी
सारा बचपन बना खिलौना गोद में बीता
देकर हमनें कष्ट तेरी ममता को जीता
छोड़ के पीछे बचपन जब आई तरुणाई
तूने अपने खून से फिर नई जोत जलाई
नई जोत से जीवन में फिर हुआ उजाला
बना के ज्योति तुझे आँख की सबने पाला.
ओ ईश्वर की देन सकल मानव जीवन को
जीवन में तेरे बिन केवल है अँधियारा
फूल खिलें जो प्यार के तेरे इस उपवन में
महक जाएगा दूर दूर तक चमन हमारा .
इस जीवन को जीने का कारण भी तू है
बन गंगा शिव मस्तक पर धारण भी तू है
सीता बन जो तू साथ राम के वन ना जाती
असुरों के अत्याचारों से फिर मुक्ति ना आती
सावित्री बन तूने दुनिया को दिखलाया
मौत भी हारी जब स्त्री ने साथ निभाया
जहाँ नहीं है इज़्ज़त तेरी कष्ट हैं भारी
वहाँ दुष्टों की करतूतों से मानवता हारी.
ओ ईश्वर की देन सकल मानव जीवन को
जीवन में तेरे बिन केवल है अँधियारा
फूल खिलें जो प्यार के तेरे इस उपवन में
महक जाएगा दूर दूर तक चमन हमारा .
शिशिर “मधुकर”
बहुत ही अच्छा चित्रण किया है शिशिर जी आपने स्त्री का।
अति सुन्दर रचना उम्दा लफ़्ज़ों के साथ। मनमोहित करने वाली रचना।
धन्यवाद अमिताभ तुम्हारी भूरि भूरि प्रशंसा के लिए
आपकी कविता की प्रशंशा दो लाइनो में व्यक्त करना चाहूंगा !!
“नाना रूप धर नारी, अपना तन-मन नर पे हारी
संग सबके चलती जाए बन जीवन की उजयारी ”
मेरी आज की रचना “अच्छे दिन आ गए” पर विचार व्यक्त कीजियेगा !!
आपने तो निवातियाँ जी दो पंक्तियों में ही पूरी कविता का सार ला दिया. धन्यवाद
नारी के उपर आपकी यह रचना मधुकर जी, उम्दा और लाजबाब तो है ही साथ ही साथ स्त्री के विभिन्न पहलू को इतनी गहराई से दर्शाती है…..जैसे आपने अतिहसिक उदहारण को भी जगह दिया है…..अनुपम…..!
.
!
Surendra, Thanks for reading and appreciating.
वआह…..कमाल की रचना है…हर पहलु का सुन्दर सजीव चित्रण……बेमिसाल….
Thank you so very much Babbu ji for reading and commenting
बहुत ख़ूबसूरत रचना है शिशिर जी ,नारी के हर पहलू को छुआ है आपने