यह कविता मैने अपनी ममेरी बहन दीपा के लिए लिखी थी जो एक दिन किसी बात पर मुझ पर क्रोधित हो गई थी और उसके बाद खूब रोई.
तुम्हारा दिल कितना सुन्दर है
जो मेरे लिए अपने मन में
क्रोध के विचार आने के बाद भी
तुम मेरी कद्र करती हो.
इस बात का सदा ख्याल रखती हो
कि मुझे कभी कोई दुःख ना पहुँचे.
फिर आज तो किसी अपने ने तुम्हारा दिल दुखाया.
जिसके दर्द में तुम्हारा मुझ पर क्रोधित होना क्रोध भी तो नहीं.
अगर तुम ये समझती हो कि मैं इतना भी समझदार नहीं
कि भावनाओं की सच्चाई को जान सकूँ.
तो तुम गलत हो एकदम गलत.
मुझे ईश्वर ने दी है वो शक्ति कि मैं देख पाता हूँ
सच्ची तड़प, सच्ची लगन, सच्चा प्यार व् सच्चा क्रोध.
फिर भी मुझे कष्ट है तेरे उन आंसुओं के लिए
मैं भी कहीं ना कहीं से जिम्मेदार हूँ.
लेकिन तब भी मैं तेरे धन्यवाद का ही पात्र हूँ
क्योंकि बिना जल अग्नि नहीं बुझती
और तेरे अश्रु जल का बाँध तोड़ने का यह
भागीरथ प्रयत्न मेरा ही था मेरा ही.
शिशिर “मधुकर”
वाह शिशिर जी, कहाँ से कहाँ की उपमा दी है आपने.
“भागीरथ प्रयत्न” “रिश्तों का विज्ञान” आपके ऐसे प्रयोग मुझे बहुत अच्छे लगते हैं और आप बहुत खूब कहते भी हैं.
बहुत बहुत धन्यवाद अमिताभ तुम्हारे शब्दो के लिए.
रिश्तो को मजबूती प्रदान करती भावुक रचना प्रेम से ओतप्रोत है !! बहुत अच्छी शिशिर जी !!
बहुत बहुत आभार निवातिया जी