आज जब तुमसे
मैं मन की बात कहूँगा
शायद तुम कह दोगी की मैं झूठा हूँ |
जब बार बार मैं तुम्हे
अपने प्यार का यकीन दिलाना चाहूँगा
तुम हर बार हंस दोगी ,
मुझ पर चाहे कुछ भी गुजरे पर मैं कुछ नही कहूँगा |
मैं हर बार कहना चाहूँगा
कि तुम्हारे बिना हर पल कितना भारी है
पर तुम मेरा विश्वास नही करोगी
सच है मेने मुस्कुराकर कुछ भी कह दिया है
न तुम ही मुझे देख कर मुस्कुरायी
ना मैं ही तुम्हारे पास गया
पर फिर भी तुम्हारे कदमो की आहट पहचानना
मैंने बंद नही किया है |
जब भी तुम कुछ कहती हो
मेरा ध्यान तुम्हारे ऊपर ही रहता है
मैं कह तो नही पाया की तुम मेरे लिए क्या हो
बस इस सब में मैं दुखता ही रहा
पर शायद इस सब पर भी तुम कह दोगी
की मैं झूठा हूँ |
-औचित्य कुमार सिंह
वाह क्या बात है.
धन्यवाद शिशिर जी
प्रेम का उपहास बहुत सरल शब्दों में उकेर दिया ! बहुत अच्छे !!
धन्यवाद निवातियां जी ।