महफिल की भीड मे मेरा शिकार करती !
जुल्मी तेरी निगाहें खंजर सी वार करती !!
कह दो उन्हे जरा सी नजरें झुका लें अपनी !
सातिर बडी निगाहें चुन-चुन प्रहार करती !!
छुप जाऊं गर कहीं भी थोडी सी आड लेकर !
आतुर तेरी निगाहें पल-पल गुहार करती !!
आखों मे सजाये अपने काजल की धार पैनी !
कातिल तेरी निगाहें दिल को हलाल करती !!
रखली उतार के पलकों पे ख्वाब सारे !
शायद तेरी निगाहें चाहत बेसुमार करती !!
अनुज तिवारी
अनुज बेहतरीन रचना है लेकिन वर्तनियों में त्रुटि ज्यादा है. इन्हे ठीक कर देना.
त्रुटियों को सुधार दिया हूं …
शिशिर जी टाइप मे मिस्टेक के लिये माफी चाहता हूं
सुक्रिया !
बहुत अच्छा गजल।
Thanks Auchitya ji
जान निकल रही थी और मरते मरते बचे है।
आपकी कविता दिल पर भी प्रहार करती।
सुक्रिया राकेश जी …..
आपका उपनाम “जयहिन्द” मुझे बहुत पसन्द है !झg
बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने की मिली !! शानदार ग़ज़ल, तबियत खुश कर दी !!
सुक्रिया निवातियां साहेब …
समय के अभाव के कारण लिखने का कार्य अधूरा पडा है !
कुछ दिनों के बाद मेरी अधूरी गजल और कविताएं जरूर पूरी होगी !
बेहतरीन… 🥀 🌹 🙏