मैं था जीवन में अकेला, थी साथी की तलाश
मिलते ही जिसके खो बैठा, मैं अपने होशो हवास
पूजा था उसको मैंने, और दिया पूर्ण विश्वास
पर ना जाने क्यों उसको, यह सब आया ना रास
मैं समझ सका ना उसको, होकर के प्रेम विभोर
शायद वह चाहती थी, मुझ से कुछ ही और
मैं कर ना सका पूरी, उसके मन की आस
यही है शायद कारण, वो नहीं है मेरे पास
वो भूल गई हो चाहे, पर मैं ना सकूँगा भूल
मेरे दिल में हमेशा चुभेगा, उसकी यादों का शूल
है मेरी यही गुज़ारिश, सब दोस्तों और यार
कुछ भी कर लो लेकिन, करना ना सच्चा प्यार
तुम प्यार करोगे सच्चा, पर कुछ ना होगा अच्छा
सिर्फ टूट जाएगा दिल, और बढ़ जाएंगी मुश्किल.
शिशिर “मधुकर”
बहुत ही सुन्दर नज़्म कही है. खूबसूरत लफ्ज़ हैं इसमें.
अंतिम पंक्ति में शायद “बाद” गलत टाइप हो गया है. कृपया सुधार लें.
अमिताभ भूल सुधार ली है. यह मेरे जीवन की पहली रचना थी जिसे मैंने ३१०१.१९९३ को लिखा था. तुम्हारी तारीफ़ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.