आंसू बन कर निकल जाते हैं जो दर्द पराये होते हैं
गम अपनों के तो हम सीने से लगाए होते हैं
रुह रोती है मगर होठों पर हंसी सजाए होते हैं
राह पर काँटे हो तो क्या, प्यार के फूल बिछाये होते हैं
नजरें झुकी है तो कमजोर समझती है जिंदगी
जख्मो दर्द को हम यूँही दिल में सजाये होते हैं
वह चांद कहता है कि दूर है मंजिल तेरी
इक हम हैं कि सितारों से होड़ लगाए होते हैं
वे हर झोंके में तूफान का आभास पाते हैं
जिन्दगी हम तो कफन ओढे ही सोते हैं
कुछ वासनाओं को ढूंढती फिर रही है उन की नजर
इन आँखों मे तो हम कई महफिल को यूँही भुलाये होते हैं
प्रेम के प्रति अपने मनोभावों एवं दर्द को उकेरती अच्छी रचना है.
धन्यवाद. आपका आशीर्वाद मिलता रहे
प्रेम के दर्द की अनुभूति सरहनीय है … अति सुंदर !!
अनुभूति के सारे कोण इन पंक्तियों में आ गए ।