ग़ज़ल (दुआ)
हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली
दुआओं का असर होता दुआ से काम लेता हूँ
मुझे फुर्सत नहीं यारों कि माथा टेकुं दर दर पे
अगर कोई डगमगाता है उसे मैं थाम लेता हूँ
खुदा का नाम लेने में क्यों मुझसे देर हो जाती
खुदा का नाम से पहले ,मैं उनका नाम लेता हूँ
मुझे इच्छा नहीं यारों कि मेरे पास दौलत हो
सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ
सब कुछ तो बिका करता मजबूरी के आलम में
मैं सांसों के जनाज़े को सुबह से शाम लेता हूँ
सांसे है तो जीवन है तभी है मूल्य मेहनत का
जितना हो जरुरी बस उसी का दाम लेता हूँ
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना
बहुत अच्छी रचना है सक्सेना साहब।
हमेशा की तरह आपके सॅंग्रह से अत्यंत सुन्दर रचना
जीवन में वास्तविक मूल्यों की पहचान कराती एक अच्छी ग़ज़ल !!
बहुत उम्दा “मदन” जी !!
बहुत सुन्दर । जिंदगी का रास्ता यूँ ही चलता जाता है ।
अज़ाबे दीद में आँखें लहू लहू करके।
मैं शर्म-शार हुवा तेरी जुस्तजू करके।
सूना है शहर में जख्मी दिलों का मेला है….
चलेंगें हम भी!मगर पीरहन रफू करके?
आपकी लाईन बहुत ही खुबशुरत है सर जी।
Excellent??