Homeआरज़ू लखनवीअलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम अलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम शुभाष आरज़ू लखनवी 24/02/2012 No Comments अलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम। सुर्ख़ शोअ़ला सियाह हो जाये॥ पाक निकले वहाँ से कौन जहाँ । उज़्रख़्वाही गुनाह हो जाये॥ इन्तहाये-करम वो है कि जहाँ। बेगुनाही गुनाह हो जाये॥ Tweet Pin It Related Posts इक जाम-ए-बोसीदा हस्ती और रूह अज़ल से सौदाई यह मेरी तौबानतीजा है बुख़लेसाक़ी का हिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन्दाँ बन गया About The Author शुभाष Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.