गीता पढ़ी, रामायण पढ़ी, पढ़ गए वेद पुराण !
मिट न सका फिर भी मानव घट का अज्ञान !!
कोई पंडित, कोई मौलवी,
कोई पुरोहित बन करे प्रचार !
धर्म नाम पर बाँट रहे ये,
कर जग के इंसानो का संहार !!
गीता पढ़ी, रामायण पढ़ी, पढ़ गए वेद पुराण !
मिट न सका फिर भी मानव घट का अज्ञान !!
हिन्दू नाम का चोला पहने,
दिन भर करते फिरते अत्याचार !
धर्म नाम पर करते फिरते,
अपनी राजनीति का प्रचार, प्रसार !!
गीता पढ़ी, रामायण पढ़ी, पढ़ गए वेद पुराण !
मिट न सका फिर भी मानव घट का अज्ञान !!
मुर्गा, बकरा, भैसा खा गए,
वो मचाते गौं मांस पर हाहाकार !
भूल गए क्यों हम सब ये,
हर जीव के प्राण सम है, कहता गीता का ज्ञान !!
गीता पढ़ी, रामायण पढ़ी, पढ़ गए वेद पुराण !
मिट न सका फिर भी मानव घट का अज्ञान !!
शिक्षा में हम बने अग्रणी,
फिर क्यों कर जाता कोई भी हमे लाचार !
कब समझेंगे हम हकीकत,
कब कर पाएंगे हम अपने सुदृढ़ शिक्षित विचार !!
गीता पढ़ी, रामायण पढ़ी, पढ़ गए वेद पुराण !
मिट न सका फिर भी मानव घट का अज्ञान !!
एक ईश्वर, एक खुदा
एक ही ब्रह्माण्ड से बना पूर्ण संसार !
एक रक्त, एक शरीर,
एक ही पंच-तत्व बना सबके जीने का आधार !!
गीता पढ़ी, रामायण पढ़ी, पढ़ गए वेद पुराण !
मिट न सका फिर भी मानव घट का अज्ञान !!
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[[_________डी. के. निवातियाँ ______]]
आज के हालातों पर कटाक्ष करती व वास्तविकता से रूबरू कराती समसामायिक रचना
ह्रदय से शुक्रिया “शिशिर जी” !!
जमाने की हकीकत का अच्छा चित्रण …..
हार्दिक आभार मित्रवर !!
धर्म की राजनीति की सही तस्वीर । यदि धर्म का मुददा हटा दिया जाए तो हालात काफी़ हद तक सुधर जांए ।?
शुक्रिया, बिमला जी !!
सियासत का आजमाया हुआ हथियार है धर्म। बहुत खूब।
धन्यवाद राकेश जी !!
कच्चे धागे कविता पर भी अपनी प्रतिक्रिया दें।
अवश्य बंधू !!