Homeअमिताभ श्रीवास्तवबात कुछ यूँ… बात कुछ यूँ… आमिताभ 'आलेख' अमिताभ श्रीवास्तव 05/10/2015 6 Comments बात कुछ यूँ हो रही है, कि रोज़ इक ग़ज़ल हो रही है । उसकी मेहरबानियाँ यूँ मुझपर, इस कदर क्यूँ नज़र हो रही हैं । वक़्त भी ले रहा है यूँ करवट, के कलियाँ शजर हो रही हैं । उसकी बेबाकियों की चर्चा, अब तो दर-बदर हो रही है । — अमिताभ ‘आलेख’ Tweet Pin It Related Posts चन्द खुशियों की खातिर… जो बीत गयीं यादें… यादों का दस्तावेज़… (नज़्म) About The Author आलेख Writing Ghazals, Nazms and Poetries since 1995. Working as Manager software engineer. Involved in many voice recording activities in the Studios of Mumbai and Delhi. 6 Comments निवातियाँ डी. के. 05/10/2015 बहुत उम्दा !! …. Reply आमिताभ 'आलेख' 09/10/2015 शुक्रिया धर्मेन्द्र जी| Reply Shishir "Madhukar" 05/10/2015 अमितभ हमेशा की तरह उत्तम Reply आमिताभ 'आलेख' 05/10/2015 बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद शिशिर जी। Reply राकेश जयहिन्द 06/10/2015 वाह वाह गजब लिखा है। पूर्व की काविता कच्चे धागे पर प्रतिक्रिया करे। Reply आमिताभ 'आलेख' 09/10/2015 राकेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए शुक्रिया. Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
बहुत उम्दा !! ….
शुक्रिया धर्मेन्द्र जी|
अमितभ हमेशा की तरह उत्तम
बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद शिशिर जी।
वाह वाह गजब लिखा है। पूर्व की काविता कच्चे धागे पर प्रतिक्रिया करे।
राकेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए शुक्रिया.