ग़ज़ल (जब चर्चा में रहे कोई)
वक़्त की साजिश नहीं तो और किया वोले इसे
पलकों में सजे सपने ,जब गिरकर चूर हो जाएं
अक्सर रोशनी में खोटे सिक्के भी चला करते
ना जाने कब खुदा को क्या मंजूर हो जाएं
भरोसा है हमें यारो की कल तस्बीर बदलेगी
गलतफमी जो अपनी है वह सबकी दूर हो जाएं
लहू से फिर रंगा दामन न हमको देखना होगा
जो करते रहनुमाई है, वह सब मजदूर हो जाएं
शिकायत फिर मुक्कदर से ,किसी को भी नहीं होगी
जब हर पल मुस्कराने को हम मजबूर हो जाएं
शोहरत की ख़ुशी मिलती और तन्हाई का गम मिलता
जब चर्चा में रहे कोई और मशहूर हो जाए
मदन मोहन सक्सेना
बहुत अच्छे मदन जी !!
अत्यंत sunder रचना है वास्तविकता को बड़ी खूबसूरती से कहा है
Hindisahitya group whats up परिवार मे आप का स्वागत है……
सम्लित होने के लिये आपका मो. नं. दें…
मेरा नं. ९१५८६८८४१८ है !!
भविष्य का सुख एयर वर्तमान का दुःख अच्छा लिखा है।
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