समस्त ब्रह्मांड का रक्तबीज है प्रेम
प्राण ऊर्जा का संचार स्तम्भ है प्रेम
प्रेम घुल जाता है अमृत सा जीवन में,
पावन करता आत्मा घृत जैसे हवन में
कण- कण यूँ ही बंध जाते हैं प्रेम के जाल में
व्यर्थ क्यों करते पल फिर, द्वेष के जंजाल में
हर कण प्रेम से जुड़ कर बनता है सृष्टि वृहद्
भौंरे का फूल से प्रेम फलता है ज्यों बनकर शहद।
प्यासी धरती पुकारती है विरह में प्रेमी बादल को
सारे बाधा तोड़ कर निकले निर्झर जा मिलने सागर को।
पृथ्वी के प्रेम में कैसे देखो वो चांद चक्कर काट रहा है
अनजान पृथ्वी भी क्यों फिर सूरज का रास्ता बाट रहा है।
मीरा का प्रेम है राधा से अलग कैसे?
बंधे हुए हैं कृष्ण प्रेम में जन जन जैसे।
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अति सुंदर……!!
Thanks for your appreciation
Dhanyawad.
Prem ki ek alag mayne dene ka prayas.
Akarshan hi Atom or Nucleus se le kar brahmand ki har cheej ko jode rakhti hai.
Maine ise Prem kaha hai.
Pasand aye to ashirwad mile