मुझे मेरे ही वजूद की तलाश है
एक मुठ्ठी आसमान की आस है
उड़ने की ललक मेरी बादलों के पास है
घर के कोने कोने में बिखरी हूँ
समेट कर खुद को चलने की चाह है
आसमान के उड़ते परिदों सी न बन्धनों की चाह है
रिश्तों के बोझ तले रिस रहा वजूद मेरा
नदिया सी बलखा के किरणों सी धरा तक आ के
ज़र्रे ज़र्रे में तलाश मुझे मेरी भी मुकम्मल एक पहचान है
Shweta
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बहुत अच्छी रचना है जो आगे बढ़ने के मनोभावों का सुन्दर चित्रण करती है.
आभार उत्साहवर्धन के लिए .. सादर
नारी ने प्रति समाज के आईने को दिशा देती भावनात्मक रचना !! बहुत अच्छे !!