चंचल मन नीली सलोनी आँखे
तेरी जुल्फे काली घटा सावन
तू पूरब की परी रानी है
तू रूमानी शाम का आगमन
जोबन हुई कच्ची कली तू
सौरभ मधु सी भरी तन
तुम शीतल हो हिम सी
हरघडी देखे तुझे मेरे नयन
कुसुम खुशबू लायी पुरवा साथ
ज़िन्दगी को हुई खुशियों से मिलन
गुनगुनाने लगा मै गीत सरगम
नाच रहा मोर बनके आज मन
सपनो सी लग रही जमीं
इन्द्रधनुष सी दिल की गगन
ज्योति सी उजाला ज़िन्दगी में
प्रेम रंग में रंगी मेरा आँगन
गवाह है पूनम की चाँद
है अमिट हमारी प्रीत बंधन
दुष्यंत देख फैली हुई नुर को
मौजो से छलक रही है जीवन
कविता का भावार्थ बहुत अच्छा है लेकिन लिंग भेद और वर्तनियों में सुधर कर इसे और उन्नत बनाया जा सकता है
thank you very much shishir ji