ये तेरी खुली खुली जुल्फे,
इन्हे अपने हाथो से सवाँर दूँ !
बरस पडु बन काली घटा,
तेरी हर बला की नजर उतार दूँ !!
ये तेरे मुखड़े की रौनक,
इस जमीन पे कोई नया चाँद उतार दूँ !
खूबसूरती तेरी माशाअल्लाह,
वो नजर ठहर जाए जिस से तुझे निहार दूँ !!
बड़ी कातिल है तेरी नजर,
कही समझ में कटार सीने पे न मार दूँ !
रहने दे जलवे शौख अदा के,
कही उसपर मै अपनी जिंदगी न वार दूँ !!
ये तेरा लहरा के चलना,
इनको किस की चाल का नाम दूँ !
झड़ते है फूल तेरे लबो से,
कहुँ इसे ग़ज़ल या सरगम का नाम दूँ !!
न आये कोई पल ऐसा,
जिनको जिंदगी में बेवफाई का नाम दूँ !
निकले जो अश्क तेरी आँखों से,
लेकर अपने अधरों पे उन्हें जाम का नाम दूँ !!
एक गुजारिश तुझ से,
गर दे इज़ाज़त तो तुझको जहन में संवार दूँ !
गर बन जाए “धर्म” की धड़कन,
तुझे नयनो के गलियारे से अपनी रूह में उतार दूँ !!
जिंदगी में तमन्ना बाकी न हो,
मिल जाए तू अगर, संग तेरे बिगड़ी तकदीर संवार दूँ !
जिक्र हो महफ़िल ऐ – खुदा
आ जाए मेरी नजर तो मै तुझे इतना प्यार दूँ !!
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!
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[[________डी. के. निवातियाँ _____]]
प्यार का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया आपने !
Thanks for your valuable comment.
अजीब कायदे हैं इन हुस्नवालों के ,
ख़ुदकुशी भी इजाजत ले के करनी है………….
Love has not an agreement..,it has it’s own feeling to enjoy your life
सुन्दर चित्रण ……loveable
Thanks dear…,…!!
what a passionate love and romance poem Nivetiya Ji.
Thanks for your energetic comment.
उच्च कोटि की रचना…
शुक्रिया बंधू !!