इस तरह मिला दिए दूजे से हमने अपने सुर
जिंदगी बन गयी ये मेरी ग़ज़ल, तेरी ग़ज़ल
पल ख़ुशी के हो या गम के, मस्ती या रंज के
झेलंगे हर हाल में, करके अच्छे बुरे पर अमल !!
किया फैसला हमने जमाने से करेंगे दो दो हाथ
मिटा के बुराई, हम खुशियो के खिलाएंगे कमल !!
तुम में अब तुम न रहो, रहे न हम में हम
आओ कर ले अपनी रूह से रूह का मिलन !!
माना के “धर्म” जालिम बहुत ये बेदर्द जमाना,
लाख करे सितम, मुकाम में फिर भी होंगे सफल !!
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[[_______डी. के. निवतियाँ _____]]
प्रेम की ऊचाई को दर्शाती रचना है ये.
हार्दिक आभार “शिशिर जी”
अच्छी गजल !z
शुक्रिया मित्रवर !!
Aeisa lagta hai jaise is pal ko aapne jiya ho….
Bhut khubsurat hai aapki ye kavita….ruh me utar jane wali……