हाँ तुम मेरे अपने हो ये कब मैंने इंकार किया
नैनों के प्यारे सपने हो ये तो मैंने स्वीकार किया
आखिर ये पीड़ाये भी तो अपनेपन की अनमोल निधि हैं
मैं दूर रहूँ या पास रहूँ ये डोर तो अपने बीच बंधी है
प्यार से मुझ से मांग के देखो ये जान भी तुम पर न्योछावर है
मैंने ईश्वर से दिन रात जो माँगा सुख ही तुम्हारा पहला वर है
चाहते हो गर मुझको तुम सब तो मुझ पर एहसान ये करना
कुछ भी कर लेना तुम चाहे आपस में अभिमान ना करना.
शिशिर “मधुकर”
सुंदर , लय में गुंथी हुयी गेय पंक्तिया …………..
बधाई हो……………
Dhanyavad Sushil for your words