आदमी हूँ , जी रहा हूँ ,
आज बोझिल जिन्दगी |
किससे कहूँ अंर्तव्यथा ,
उसको खोजे जिन्दगी |
रिश्ते अनेको हैं यहाँ पर,
लगती फीकी जिन्दगी |
जल रही है आग दिल में ,
है अधजली सी जिन्दगी |
गुत्थियों ने है दबोचा ,
आज सिहरी जिन्दगी |
न उड़ो पंकज यहाँ तुम ,
एक बुलबुला है जिन्दगी |
आदेश कुमार पंकज
Nice gajal. ….
akelepan ki peeda ko darshan sunder rachna
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मयोव्यथा की पीड़ा को चित्रित करती अच्छी ग़ज़ल !!