तन है अर्पण,मन है अर्पण
अर्पण है ये जीवन तुमको
मातृभूमि पे हो न्यौक्षावर
रहती ऐसी कामना हमको
धन्य हुआ वह यौवन
जो मातृभूमि के काम आया
मातृभूमि के जय में शामिल
धन्य हुयी वो आवाजे
अमरत्व मिली उस लेखनी को
जिसने है गुणगान लिखे
लालायित पुष्पों का जीवन
वसुधा के श्रृंगार को
तन है अर्पण,मन है अर्पण
अर्पण है ये जीवन तुमको …..
गिरती है वो वर्षा की बुँदे
हो आनंदित इस रज कण में
हो धूल-धूसरित पवन कहीं
इठलाते है इस क्षण में
गर्वित होता है हर कोई
शामिल हो के इस जन गण में
लेते है प्रभु अवतार नया
हो व्याकुल इसके प्रेम को
तन है अर्पण,मन है अर्पण
अर्पण है ये जीवन तुमको ……
Omendra ji patriotism se saje sundar vichar is poem mai hai. Mere vichar se yadi aap aisi rachnao me lay aur behtar kar sake to adbhut rahega
सुझाव के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद शिशिर जी ..अगली रचनाओ में बेहतर प्रयास करने की कोशिश करूँगा ..
शब्द संकलन बहुत शानदार है …….उचित संयोजन से चार चाँद लगाये जा सकते है !!
ओमेन्द्र जी, लेखनी बहुत अच्छी है…. बहुत बहुत बधाई !!