उस पार उतरने की जल्दी में हम अपनों को ही भूल गए
जिस राह में उंगली पकड़ी थी उस राह पर उनको छोड़ गए
वो देख किनारा स्वपन सलोना हठ को फिर मज़बूर किया
लहरो की मौजो में तुमने खुद को नशे में चूर किया
उस साँझ मैं ढलती आशाओ को एक पल में झकझोर दिया
उन बूढी आँखों की परतों को तुमने आज निचोड़ दिया
वो रात अँधेरी थी वर्षा ऋतू कम्पन जब तुम करते थे
वो बैठ किनारे खटिया के तन शाल लपेटा करते थे
उसी किनारे तुमने आज उनकी चिता जलायी है
वो आग देखकर तुमको इक फिर कपकपी सी आयी है
………….फिर कपकपी से आयी है ……………….
…………………………………………………
बहुत गहराई से बात कहती मन को झकझोरने वाली कविता
धन्यवाद sir
अब मन भी चिंतन करता है इस झणभगुर जीवन का
जो कभी हिलोरे लेता था उस बलखाती धारा में