ग़ज़ल( जिंदगी)
जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।
दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।
किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।
उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।
किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को………………mza aa gya sir iss line main 🙂
दुरुस्त फरमाया “मदन जी” बहुत अच्छे !!
अंतिम दो पैरा में भी यदि “है खेल जिंदगी”i शब्द समूह का इस्तेमाल किया जाए तो बहुत अच्छी लय बन पड़ेगी. ग़ज़ल का मर्म बहुत अच्छा है.