जब भी मैंने सुंदरता को परिभाषित करना चाहा
एक तेरा ख्याल ही मेरे इस पागल दिल में आया
मैं पा ना सका इस जीवन में तुझ जैसा सुन्दर मोती
कितना अच्छा होता जो तुम पास मेरे अब भी होतीं.
जब भी करता हूँ याद तेरी वो सारी दिलकश बातें
रात बदल जाती है दिन में और दिन में होतीं है रातें.
तेरी महकी साँसों का जब जब होता है एहसास
मन में बढ़ती जाती है तेरे मिलन की पावन आस
तेरा वो अधिकार जताना अब भी याद आता है
लेकिन तेरा पास ना होना तीर चला जाता है.
इस जनम में अब तो मेरी सिर्फ यहीं है प्यास
मूरत ओ सुंदरता की तू आ जाए मेरे पास.
शिशिर “मधुकर”
प्रेम में बीते लम्हों की कसक को हवा देती दिलकश रचना !!
बहुत पुरानी १९९३ की रचना है निवातिया जी. प्रतिक्रिया के लिए आभार