अपने घर के सब दरवाज़े खोल दो
बंद कमरों में गीत नहीं लिख पाऊँगा ।
नक़ाब सारे हटा दो अपने चेहरे से
वरना तुझपे ग़ज़ल नहीं कह पाऊँगा ।
ग़म को तुम छुपाते रहे ग़र यूँही मुझसे
ग़म की तेरे दवा नहीं कर पाऊँगा ।
ज़माने ने बाँध दिए हाथ मेरे ‘आलेख’
अब तेरे लिए दुआ नहीं कर पाऊँगा ।
— अमिताभ ‘आलेख’
अमिताभ हमेशा की तरह एक कसक समेटें अच्छी रचना.
बहुत धन्यवाद एवं आभार शिशिर जी |
बहुत उम्दा “अमिताभ जी”
शुक्रिया धर्मेन्द्र जी |