एक पटल पर लाकर तुमने हमको कहीं पर खड़ा किया
उन शत प्रतिशत बाधाओं को अंतर्मन में ढाल दिया
वो कहते है सब नर नर है उस नारी के जीवन मैं भी
वो नार नहीं तो जीवन क्या तुम उसको क्या बतलाओगे
पूजो हमको साँझ सवेरे जीवन के हर पथ पर तुम
दुर्गा हो या काली फिर भी अहसान जताओगे
थी अखंड में, खंड खंड कर क्यों तुमने चकनाचूर किया
क्यों राग विरह के वैभव में तुमने मुझको मजबूर किया
जब छेड़ के ताना बाना हमने इस श्रष्टि को भी दिखलाया
जीवन की हर मझदार में तुमने साथ सदा मेरा पाया
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Very nice thoughts and sarcasm on hypocicy of gender equality.There seems to be a lack of clarity in the last line.
धन्यवाद sir ji…
अंतिम पंकित को उसकी दिशा दिखाने का मैं अवश्य प्रयास करूँगा
शब्दों को रस काव्य घोल में थोड़ा वक्त तो लगता है
जिव्हा स्वाद न सही लेकिन प्यास तृप्त तो करता है 🙂
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धन्यवाद sir ji
सुन्दर अभिव्यक्ति !!
धन्यवाद sir ji
एक प्यास जरुरी थी मन की जो आपने आज बुझा डाली
कह कर “सुन्दर अभिव्यक्ति” फिर एक नयी आस जगा डाली !! 🙂