क्षुद्र हूँ
ब्राह्मण, क्षत्रिय वाला नहीं
व्यवहार में
उग्र हूँ
मुर्ख हूँ
ज्ञान, विज्ञान वाला नहीं
अहम् कूप का
मण्डूक हूँ
अयोग्य हूँ
धन, क्षमता वाला नहीं
स्वार्थ प्रेरणा में
दक्ष हूँ
नर्क हूँ
पाप, पुण्य वाला नहीं
कदाचार विचार से
लिप्त हूँ
मनुष्य हूँ
मनुष्यता वाला नहीं
ऊपरी लिबास का ही
दृश्य हूँ
-मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’
Hindi poem on humanity and bad manners
Aaj ke manav ki manhsthiti ka citran karti sunder rachna
Dhanyawad Shishir ji 🙂
सुन्दर अभिव्यक्ति, प्रशंशनीय !!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙂