आईने के पीछे रहकर हासिल न कुछ तुम्हे होगा,
सामने आओ आईने के हकीक़त से सामना होगा।
मौत से जितना डरोगे उतना ही डराएगी,
गले लगा लो मौत को तो ज़िन्दगी से सामना होगा।
क्यों लड़ रहे हैं मज़हब आखिर ख़ुदा को पाने के लिए,
इंसान को अपना के देखो ख़ुदा से सामना होगा।
ऐ काश ! के पूछे कोई मेरी खुशी का राज़,
मैं बताऊँ फिर ये के आज उनसे सामना होगा।
— अमिताभ ‘आलेख’
उत्साहवर्धन करती अच्छी रचना !!
बहुत धन्यवाद धर्मेन्द्र जी |
Amitabh your style is always unique. The way you bring out the feelings is not an easy task and is possible when you live with and believe in those feelings.
Thank you so much Shishir Ji for your wonderful words.
I will always try to improve my writing as I can day by day.
Thanks again.
अमिताभ जी ,जब माला, तिलक और भगवें वस्त्र पहन हैवान धर्मगुरु बन जाएं तो इन्सान को कौन अपनाएगा ।
आप का कवि मन है, अपनी तड़प को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है आप ने ।
बिमला जी तारीफ़ के लिए धन्यवाद। आपकी बात से सहमत हूँ।।