सालों से है भूले हुए हम उन तमाम यादों को,
सोचते ही आँखें भर आए जिन दुखद खयालों को,
संकल्प था कि न करेंगे उन यादों की सवारी,
पर न जाने क्यों आज फिर हुआ मन भारी |
ये यादें हैं! पर न समझो इनको तुम कम,
कि भूल पाओगे इन्हे आसानी से – ये है तुम्हारा भ्रम |
हाँ, संकल्प था कि न करेंगे उन यादों की सवारी,
पर न जाने क्यों आज फिर हुआ मन भारी |
अरे ये तो यादें हैं, न छू सकेंगी तन को,
पर देखो आज कैसे चुभ रही हैं ये मन को |
आह! संकल्प था कि न करेंगे उन यादों की सवारी,
पर न जाने क्यों आज फिर हुआ मन भारी |
क्यों न जाने कुछ यादें ऐसी रह जाती हैं,
जो घटित घटना से भी ज़्यादा तड़पाती हैं |
अरे, संकल्प था कि न करेंगे उन यादों की सवारी,
पर न जाने क्यों आज फिर हुआ मन भारी |
कुछ सिखा गयी जो तुम्हे, यादें हैं उन पलों की झाँकी,
कुछ अश्रु तो रहेंगे हरदम उन्ही यादों के लिए बाकी |
खैर, संकल्प तो था कि न करेंगे उन यादों की अब और सवारी,
पर शायद पढ़े पाठ का स्मरण कराने, आज फिर हुआ मन भारी !
Nice composition…
Thank you so much 🙂
Hindisahitya whatsup group me aap kaa swagat hai …
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आपकी दूसरी रचना की तरह ये भी एक बहुत सुन्दर रचना है. इसी तरह की रचना १९९३ के आस पास मैने भी लिखी थी. आज मै प्रकाशित करुगा. अपने विचार जरूर भेजे.
Ji zaroor Sir 🙂
achi tunning ban padi hai iss poem main, aapke dirshtikon lajbab hai.
Thank you 🙂
शब्द संयोजन एवं ले का तालमेल बहुत अच्छा है ! सुंदर रचना !!
शब्द संयोजन एवं लय का तालमेल बहुत अच्छा है ! सुंदर रचना !!
Thank you Nivatiya Ji 🙂