हाथों की लकीरों ने क्या खेल दिखाया ।
जिनसे न मोहब्बत थी हमें उनसे मिलाया ।।
उन शोख हसीनों से ज़रा जाके तो पूछो ।
तन्हाई में अपनी न कभी उनको बुलाया ।।
वादे जो किये थे कभी हमने वो तुमसे ।
वादों को अपने न कभी हमने भुलाया ।।
हर जुर्म के बदले में हमने उसे चाहा ।
नज़रों से कभी अपनी न उसको गिराया ।।
हाथों में नहीं दम ‘आलेख’ पाँव भी थके हैं ।
महबूब मेरा क्यों मेरे सामने आया ।।
— अमिताभ ‘आलेख’
बहुत खूब ” अमिताभ जी “
धन्यवाद धर्मेन्द्र जी |