जाने क्यूँ देख के मुझको तुम यूँ शरमाते हो
मिल ना जाए कहीं नज़र से नज़र
क्यूँ ये तुम सोच के घबराते हो.
तुम यूँ नज़रे जो चुराकर के निकल जाते हो
कैसे बतलाऊँ तुम्हे कितने सितम ढाते हो.
जाने क्यूँ देख के मुझको तुम यूँ शरमाते हो
मिल ना जाए कहीं नज़र से नज़र
क्यूँ ये तुम सोच के घबराते हो.
होते हो जब कभी तुम महफ़िल में
क्यूँ मुझे देखकर मुस्कराते हो.
जाने क्यूँ देख के मुझको तुम यूँ शरमाते हो
मिल ना जाए कहीं नज़र से नज़र
क्यूँ ये तुम सोच के घबराते हो.
कहते कुछ भी नहीं जुबां से पर
आँखों से सब कुछ कह जाते हो.
जाने क्यूँ देख के मुझको तुम यूँ शरमाते हो
मिल ना जाए कहीं नज़र से नज़र
क्यूँ ये तुम सोच के घबराते हो.
ये भी क्या अजीब दास्ताँ है “मधुकर”
खुद तड़पते हो औरों को भी तड़पाते हो.
जाने क्यूँ देख के मुझको तुम यूँ शरमाते हो
मिल ना जाए कहीं नज़र से नज़र
क्यूँ ये तुम सोच के घबराते हो.
अति सुन्दर …….!!
धन्यावाद श्री निवातिया जी