प्रेम से भरा वसंत
प्रेम से भरा वसंत ,
पूस के कंपकंपाते ठण्ड से ,
बचाता है उन्हें ,
जो नहीं सोये थे ,
सावन के बाद .
प्रेम से भरा वसंत ,
नंगे पेड़ो के साथ .
ढँक देता है ,
उनके जिस्म पर,
अपने हवाओं का कम्बल ,
जिनके लिए कम्बल बनते ही नहीं.
प्रेम से भरा वसंत ,
sarso के खिलखिलाते चेहरों के साथ ,
बदल देता हैं ,
उनके चेहरों को भी ,
जिनकी रौनक छीन ली है ,
बुढ़ापे की झुर्रियों ने .
प्रेम से भरा वसंत ,
jaa raha है आज ,
aam की manjariyon dekar ,
jaa raha है ,
budhe जिस्म को akela chod kar
jaa raha है ,
पेड़ो को unki pattiyan dekar ,
aur ye khekar,
ab saamna karo ,
गर्मी की तपिश का ,
बिजलियों के कड़कने का ,
बारिश की तीक्ष्ण बूंदो का ,
aur saamna karo ,
पूस की kaali thandi raat का ,
मैं फिर aaunga ,
पर tum ,
mera intjaar नहीं ,
saamna karo
tum saamna karo .
बहुत ही खूबसूरत रचना है जो जीवन में कठिनायों का सामना करने की प्रेरणा देती है और इंगित करती है की समय बदलता रहता है.
dhanyawad uncle
लेखन में पकड़ मजबूत नजर आती है, जारी रखे !