वक़्त चलता रहा मगर ,
तेरी यादें ठहर गयी इस दिल में
फिर वो हसीं चेहरा सामने आया
तेरा ज़िक्र जब आया महफ़िल में
तम्मनायों के फूल सूख चुके थे
मेरी दिल की किताब में
फिर दिल की कली खिल उठी
जब तेरी सूरत नज़र आई आफताब में
की थी दुआ मैंने ये रब से
तेरी यादों का साथ अब छूट जाए
और रिस्ता जुड़ा था जो दिल से दिल की डोर का
वो डोर किसी तरह कच्चे धागे सी टूट जाए
दिल तोड़ के चले जाना तेरा
कुछ फर्क नहीं अब तुझ में र कातिल में
मेरा बचना नामुमकिन था
जब खुद डुबो दिया मुझे साहिल ने
नहीं मालुम कब तक तेरी यादें
अब रहेगी साथ मेरे
बाहर की रोशन दुनिया भी
नहीं मिटा सकी मेरे दिल के अँधेरे
हितेश कुमार शर्मा
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बहुत बेहतरीन रचना है हितेश जी.
बहुत बहुत धन्यवाद जी
बहुत ही सुन्दर कविता हितेश जी ।
भावनात्मक तथ्यों को छूती सुंदर रचना ” हितेश जी”
प्रोत्साहन के लिये आपका शुक्रिया