गीत … आखिर क्यों ये पुरवा आई…..
मन की प्रीति पुरानी को, क्यों हवा दे गई ये पुरवाई |
सुख की नींद व्यथा सोई थी, आखिर क्यों ये पुरवा आई
हम खुश खुश थे जिए जा रहे, जीवन सुख रस पिए जारहे |
मस्त मगन सुख की नगरी में, सारा सुख सुन्दर गगरी में |
सुस्त पडी उस प्रति रीति को, छेड़ गयी क्यों ये पुरवाई | —आखिर क्यों ये….
प्रीति वियोग के भ्रम की बाती, जलती मन में विरह कथा सी |
गीत छंद रस भाव भिगोये, ढलती मन में गीत कथा सी |
पुरवा जब संदेशा लाई, मिलने का अंदेशा लाई | —आखिर क्यों ये पुरवा …
कैसे उनका करें सामना, कैसे मन को धीर बंधेगी |
पहलू में जब गैर के उनको, देख जले मन प्रीति छलेगी|
कैसे फिर यह दिल संभलेगा, मन ही तो है मन मचलेगा |
क्यों ये पुरवा फिर से आयी, क्यों नूतन संदेशा लाई |
मन की प्रीति पुरानी को, क्यों हवा देगई ये पुरवाई || —आखिर क्यों ये ….
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अति सुन्दर रचना है.
सुंदर रचना ………..अति सुंदर !!
धन्यवाद -डीके…शिशिर …एवं अनुज —– मेरे मोबाइल में वाट्स एप नहीं है…
bahut sunder geet sir………