दर्द के रिश्ते को तुमने भी सदा दिल में छुपाया
गुजरे जमानें बाद फिर लम्हा तुम्हे वो याद आया
छोड़ के जब तुम मुझे एक और जन्नत में गए थे
देख महलों की चमक जब तोड़ कर दिल को गए थे
तुम क्या जानो किस कदर दिल था मेरा तुमने दुखाया
खुद भी रोए और मुझको भी था यूँ बरसों रुलाया
छोड़ कर जब तुम गए थें बाँहों से अपनी मेरी बाहें
यूँ लगा जैसे बिछड़ गई साथ में चलती दो रहें
राह में चलते अकेले ख्याल जब तुम्हे मेरा आया
जीवन में मेरे आ चूका था प्यार का वो दूजा साया.
शिशिर “मधुकर”
दर्द को एक शायरी के रूप मे अच्छी तरह से कहा आपने !!zz
बहुत बहुत शुक्रिया अनुज
नज़्म का अंत लाजवाब है शिशिर जी |
Prem milan ka mohtaj nahi. Isme pachhtawe ki koi jagah nahi hoti.
Prem kabhi marta bhi nahi hai. Dil me rah kar amrit manthan hota hai prem ke dwara.
सही कहा आपने शिशिर जी दर्द का अपना एक अलग रिश्ता होता हैं !!
अमिताभ, उत्तम जी एवं निवातियाँ जी आपके शब्दों के लिए बहुत बहुत आभार. आप लोगों से मेरी प्रार्थना है की शनिवार को प्रकाशित मेरी रचना “स्त्री” पर अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर भेजें.
शिशिर जी मेरी तरफ से निश्चिंत रहिये. मैं तो पहले ही अपना योगदान दे चूका हूँ. वैसे भी मुझे इंतज़ार रहता है आपकी नयी रचनाओं का.