क्या लिखूं अब और ज़िंदगी के इन सफ़ों पर, सारे रंग तो भर चुका हूँ ।
कहाँ से लाऊँ अब और नए रंग के गुलाब ?
जब से तुम गए हो, ज़िंदगी में बस एक ही रंग है अब– “सफ़ेद” ।
बालों में भी अब तो झलकने लगा है…
कैसे उतार सकता हूँ इस रंग को मैं उन सफ़ेद कागज़ों पर; कुछ नज़र आएगा क्या भला ?
अब तो बस तलाशता हूँ गहरे स्याह रंग के कागज़, जिनमे तुम्हारी जुदाई का दर्द दफनाऊँ जो साफ़ साफ़ नज़र तो आये ।
और शायद फिर आये कहीं से कोई हवा का झोंका जो उड़ा ले जाये इन सफ़ों को तुम तक ।
जिसे कभी पढ़ के तुम लौट आओ वापस मेरी वीरान ज़िंदगी को रौशन करने…..!!!
— अमिताभ ‘आलेख’
Nice line…..!zz
thanks Anuj… !
वाह दर्द को बयान कितने सुन्दर तरीके से किया है.
अनेक धन्यवाद शिशिर…
जीवम का सार लिख डाला, बहुत अच्छा लिखा है
“क्या लिखुँ” पर मेरी भी एक रचना है पढियेगा जरूर !!
inviting you for whats up hindisahityahindisahitya group…
My no. ९५८६८८४१८
निमंत्रण के लिए बहुत बहुत आभार अनुज।
मित्र अनुज। कृपया नंबर पुनः से जांच लें। मुझे लगता है की 10 अंक होने चाहिए नंबर में।
धन्यवाद।