ऐ साए -तू क्या है ?
कहां हैं वो तेरे
चहकते हुए साथी
थी प्यारी जिन्हें
तेरी हर डाली डाली ?
” मै साया नहीं –
प्राण मुझ में अभी हैं,
कोई साथी ना मेरा
मुझे ग़म नहीं है ।
ये साथी जिन्हें तुम
साथी हो कहते,
मुझे क्या ये देंगे
ये तो खु़द हैं प्यासे ।
भटकते ये दर दर
दुपहरी के मारे,
मिली जहां छांव
वहीं भागे सारे ।”
“नहीं दोष इन का
चलन ही यह -हाय,
अन्धेरे से डरते
उजाले के साए ।
मौसम बदलते
बदल जाते रिश्ते,
बदलती हवाएं
बदलती घटाएं,
जो कल तक थे अपने
हुए वह पराए ।”
” चक्र जीवन का
यूं चलता रहेगा,
जो पतझड़ है आया
वसन्त भी आएगा ।
मैं फिर से हसूंगा
लिए फिर वो साए,
चहकता है कोई
यही मुझ को भाए ।”
—– विमल
(बिमला ढिल्लन)
Bimla ji. Jeevan ke is secret ko samjahane ke baad kitni shanti milti hai. Lekin is sach ko atmsaat karna sabke bas ki baat nahi. Bahut bhadia rachna pratiko ke madhyam se gahra sandesh deti hai.
शिशिर जी ,धन्यवाद, आप के प्रेरणादायक शब्दों के लिए । Thank you.
बिमला जी , शब्द संरचना बहुत प्रशंशनीय है !!
Thank you, Nivatian ji.