ख़्वाहिश है इस दिल की ये
ऐ वक़्त ज़रा तू पीछे चल।
मैं जी लूँ फिर से लम्हे वो
जिनमे रहती थी तुम हरपल।।
वो सुबह थी कितनी मीठी
वो लम्हे थे कितने प्यारे।
जिन लम्हों में सब हाल-ए-दिल
तुमने कह डाला था मुझसे।।
हर सुबह थी चहकी चहकी
और दिन भी सुहाने लगते थे।
हर रात थी अपनी तब तनहा
पर सपने अच्छे लगते थे।।
एक मौज सी रहती थी दिल में
एक दर्द-ए-दिल भी रहता था।
शायद वो पहला दर्द था जो
कुछ मीठा मीठा लगता था।।
तुम कितना लड़ती थी मुझसे
तुम शरमाया भी करती थी।
तेरी उन शोख अदाओं पर
धड़कन रुक जाया करती थी।।
अब दिल में दर्द नहीं कोई
न कोई मौज ही रहती है।
जीवन की अफरा तफरी में
बस साँसे चलती रहती हैं।।
अपनी साँसों में यादों में
महसूस मैं करता हूँ तुमको।
वो यादें ही सौगातें हैं
मैं ज़िंदा रखता हूँ उनको।।
न कोई गिला न शिकवा कोई
न कोई शिकायत है मुझको।
उन लम्हों, यादों की जानिब
शुक्रिया मैं करता हूँ तुझको।।
— अमिताभ ‘आलेख’
Very nicely expressed soft love feelings
Thanks a lot Shishir.
प्रेम की अनुभूति से ओत-प्रोत सुन्दर कविता !!
प्रशंसा हेतु अनेक धन्यवाद धर्मेन्द्र जी |
Amitabh ji aapka javab nahi..Lajwab prastuti..
अनेक अनेक धन्यवाद ओमेन्द्र जी ।