तुम होते ग़र सूरज तो हर सुबह आते।
बादलों को चीरकर भी मुझ तक पहुँच जाते।।
पर तुम तो हो वक़्त जो गुज़र के ऐसा गया कि वापस नहीं आया।
शाख से टूट गया जो ज़रा सा झोखा आया।।
आज कभी उदासी की दहलीज़ लांघती है जब ज़िन्दगी मेरी।
तो दिल तुम्हे याद कर लेता है मेरा चुपके से।।
तुम्हारी यादें आज भी जब दस्तक देती हैं मेरे सुने दिल को।
तो महका जाती हैं मेरे अंतर्मन को।।
और तुम्हारे जिस्म की खुश्बू भी महसूस होती है मुझको।
जब कभी अकेला गुज़रता हूँ मैं किसी राह-ए-गुलशन से।।
ज़िन्दगी में किसी तरह शामिल सी हो ये भी एहसास है।
पर एक सच ये भी है कि तुम साथ नही हो आज मेरे।।
— अमिताभ ‘आलेख’
एक अच्छी और अच्छे अन्दाज़ में कही गई कविता ।
धन्यवाद बिमला जी !
अति सुन्दर ………!!
धन्यवाद धर्मेन्द्र जी!
प्रेम व विरह का ममस्पर्शी चित्रण
धन्यवाद शिशिर जी !