तुम दूर जा रहे हो अपना ख़याल रखना,
ये कह के ज़ालिम मुझसे खुद दूर हो गया।
बेटे उतार देंगे सब क़र्ज़ उसके एक दिन,
बस इस ख़याल से ही वो मगरूर हो गया।
हकीक़त बयाँ हुई तो कुछ इस तरह हुआ,
आईने में उसका चेहरा चकना चूर हो गया।
क़र्ज़ उसके ऊपर अब नहीं किसी का कुछ भी,
उसको न जाने कैसा ये गुरूर हो गया।
जुर्म से रंगे हों हाथ सियासतदारों के,
आज कल अब आम ये दस्तूर हो गया।
— अमिताभ ‘आलेख’
जीवन की हकीकतों का बड़ा व्यंग के साथ असरदार चित्रण
अनेक धन्यवाद शिशिर जी ।
बहुत अच्छे ………..!!
अनेक धन्यवाद धर्मेन्द्र जी ।