.।।ग़ज़ल।।हुआ बदनाम साहिल पर।।
दरिया से निकलकर मैं हुआ नाकाम साहिल पर ।।
महज़ तेरे प्यार के ख़ातिर हुआ बदनाम साहिल पर ।।
बड़े नायाब होते है तुम्हारे प्यार के तोहफ़े ।।
जिसे मिलता वही फिरता यहा गुमनाम साहिल पर ।।
यहा के रहबरों को भी न जाने क्या हुआ होगा ।।
जिसे देखो वही लेता तुम्हारा नाम साहिल पर ।।
यहा तन्हा की बस्ती में ग़ज़ब के गम उभरते है ।।
तुम्हारे रूप से मिलता बड़ा आराम साहिल पर ।।
तुम्हारी ही अदाओ से यहा रौनक उभरती है ।।
दरिया तक भटकते है सुबह से शाम साहिल पर ।।
मैं था ढूढ़ने आया यहा पर दर्द का मरहम ।।
हक़ीक़त से न वाक़िब था लगा इल्जाम साहिल पर ।।
कभी चर्चा जो होती तो हमारा नाम आता था ।।
बनाकर अज़नबी छोड़ा हुआ बेनाम साहिल पर ।।
रहने दो अभी तक तो पुराने गम ही काफ़ी है ।।
अग़र भटके चला लेंगे इसी से काम साहिल पर ।।
R.K.M
रामकेश जी कमाल की रचना है. आनंद आ गया शेरों को पढ़कर.
bhut bhut abhar Madhukar ji
सुन्दर शब्द संयोजन बहुत अच्छे !!
abhar D K ji apka
आंसुओं ने दिल के जख्मों को हरा कर दिया
जिंदगी भर जिंदगी का हक अदा कर दिया ?
हम रात-दिन नमाजे पढ़ -पढ़ दुआ करते हैं
तेज इतनी की सीने मेंहम जलन रखते हैं ||